नीलकंठ
महादेवी वर्मा
Neelkonth |
1.अति संक्षिप्त उत्तर दो:
(क) मोर-मोरनी के जोड़े को लेकर घर पहुँचने पर सब लोग महादेवी जी से क्या कहने लगे?
उत्तर:
मोर मोरनी के जोड़े को लेकर घर पहुँचने पर सब लोग महादेवी से कहने लगे कि 'यह मोर नहीं बल्कि तीतर है। उन्हें मोर कहकर ठग लिया गया है।'
(ख) महादेवी जी के अनुसार नीलकंठ को कैसा वृक्ष अधिक भाता था?
उत्तर:
नीलकंठ को सुनहली मंजरीयों से लदी और पल्लवित वृक्ष अधिक पसंद थे। वसंत ऋतु आते ही जब आम के वृक्ष सुनहरी मंजरियों से लद जाती और अशोक के वृक्ष मानो लाल पल्लवों से ढक जाती है, तब नीलकंठ उन वृक्षों में जाने को इतना व्याकुल हो जाता कि जालीघर से उसे बाहर छोड़ देना पड़ता।
(ग) नीलकंठ को राधा और कुब्जा में किसे अधिक प्यार था और क्यों?
उत्तर:
नीलकंठ को हमेशा से राधा से ही प्यार था। क्योंकि राधा पहले से ही उसके साथ थी और उसका स्वभाव भी शांत था एवं राधा सभी से प्यार से पेश आती। जबकि कुब्जा स्वार्थी और झगड़ालू किस्म की थी। कुब्जा के आते ही जालीघर मैं पहले जैसा हंसता खेलता माहौल नहीं रहा। यही कारण है कि नीलकंठ राधा से अधिक प्यार करता था।
(घ) मृत्यु के बाद नीलकंठ का संस्कार महादेवी जी ने कैसे किया?
उत्तर:
मृत्यु के बाद नीलकंठ को महादेवी ने अपने शाल में लपेटकर गंगा की तेज धारा में उसे प्रवाहित कर दिया। धारा में प्रवाहित नीलकंठ को देख महादेवी ने देखा कि उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित- प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाट मानो एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा है।
2. संक्षेप में उत्तर दो:
(क)बड़े मियाँ ने मोर के बच्चे दूसरों को न देकर महादेवी जी को ही क्यों देना चाहता था?
उत्तर:
बड़े मियाँ जो कि एक पक्षियों के दुकानदार थे, वे जानते थे कि महादेवी को पक्षियों से अधिक लगाव है। जब मोर के दो बच्चे बड़े मियाँ के दुकान में आए तो महादेवी को ही उन पक्षियों को बेचने का ख्याल आया। दूसरा कारण यह भी था कि दूसरे ग्राहक मोर के पंजों से दवा बनाकर उसे मार देते थे। आखिर बड़े मियाँ के पास भी एक कोमल ह्रदय था। वे जानते थे कि महादेवी के पास यह मोर सुरक्षित रहेंगे। इन्हीं कारणों से बड़े मियाँ ने महादेवी को वे मोर देने चाहे।
(ख) महादेवी जी ने मोर और मोरनी के क्या नाम रखें और क्यों?
उत्तर:
महादेवी ने मोर और मोरनी का नाम रखा नीलकंठ और राधा। मोर का गर्दन नीले रंग का था जिसके कारण महादेवी ने उसे नीलकंठ का नाम दिया। दूसरी और मोरनी हमेशा मोर के साथ छाया बनके घूमती रहती। दोनों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो कृष्ण के संग राधा घूम रही हो। इसी कारण महादेवी ने मोरनी का नाम राधा रख दिया।
(ग) लेखिका के अनुसार कार्तिकेय ने मयूर को अपना वाहन क्यों चुना होगा? मयूर की विशेषताओं के आधार पर उत्तर दो।
उत्तर:
कार्तिकेय देवताओं के सेनापति थे। उन्होंने अपने युद्ध वाहन के रूप में मयूर को ही चुना था। क्योंकि मयूर एक कलाप्रिय पक्षी है और दिखने में एकदम शांत स्वभाव का है। पर वह जरूरत पड़ने पर वीरता एवं साहस का भी परिचय देने मैं पीछे नहीं हटता। साथ ही साथ युद्ध की कला भी उसे अच्छी तरह आती है। लेखिका के अनुसार मयूर बाज, चील आदि की तरह क्रूर और हिंसक नहीं है। इन्हीं कारणों के वजह से कार्तिकेय ने मयूर को अपना वाहन चुना होगा।
(घ) नीलकंठ के रूप-रंग का वर्णन अपने शब्दों में करो। इस दृष्टि से राधा कहाँ तक भिन्न नथी?
उत्तर:
मोर के सिर की कलगी और सघन ऊंची तथा चमकीली थी। चोंच अधिक बंकिम और पैने थे। आंखों में मानो इंद्रनील की नीलाभ द्युति झलकती थी। लंबी नील-हरित गर्दन पर धूप-छाँहो की तरंगे उसे और चार चांद लगा देते थे। पंखों में सलेटी और सफेद रंगो का संगम, लंबी पूँछ, रंग-बिरंगे रंगों से भरी पंख उसके सौंदर्य को और निखार देती थी।अत: नीलकंठ देखने में मनमोहक एवं सौंदर्य का सुकुमार था।
नीलकंठ की तुलना में राधा थोड़ी भिन्न थी। उसकी गर्दन लंबी थी आंखों में काले सफेद रंगों की पत्रलेखा थी। उसके पैरों में नीलकंठ जैसी गति तो नहीं थी, पर जब वह मंथर गति से चलती तो उसकी शोभा देखने लायक होती थी। वह इस कदर चलती की मानो नीलकंठ की संगिनी होने का प्रमाण दे रही हो।
(ङ) बारिश में भींगकर नृत्न करने के बाद नीलकंठ और राधा पंखों को कैसे सुखाते?
उत्तर:
नीलकंठ और राधा को वर्षा पसंद था। जब भी वर्षा आती वह दोनों बारिश में भीगकर नृत्य करने लगते। बारिश थम जाने के बाद वे दोनों अपने भीगे पंखों को आकर्षक ढंग से सुखाने लगते। वे अपने दाहिने पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पंख पर बायाँ पंख फैलाकर पानी को सुखाते। कभी-कभी तो एक दूसरे के पंखों में लगी बूंदों को अपनी चोंच से पी-पी कर दूर कर दे थे।
(च) वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय हो जाता था, क्यों?
उत्तर:
नीलकंठ को वर्षा बहुत पसंद थी। जब भी आकाश में बादल छाने लगते तो नीलकंठ नृत्य करने से अपने आप को रोक नहीं पाता। उसे आम के पेड़ और अशोक के पेड़ बहुत भाते थे। जब वसंत ऋतु में सुनहरी मंजरिलयों से लदी आम के वृक्ष और लाल पल्लवों से ढके अशोक के वृक्ष को देखता तो वह अपने आपको वहां चढ़ने से नहीं रोक पाता। अतः वह इतना उत्तेजित हो जाता कि उसके लिए जालीघर में रहना असहनीय हो जाता और महादेवी को उसकी उत्सुकता को देख जालीघर को खोल देना पड़ता था। ताकि वह वृक्षों के डालियों में छड़ वसंत ऋतु का लुफ्त उठा सके और वृक्ष के नीचे अपने रंग बिरंगे पंखों को खोल नृत्य कर सके।
(छ) जाली के बड़े घर में रहने वाले जीव जंतुओं के आचरण का वर्णन करो।
उत्तर:
महादेवी को पशु-पक्षियों से लगाव तथा प्रेम था। इसी वजह से उन्होंने अपने घर में ही एक बड़ा जालीघर बनवाया जहां अनेक प्रकार के जीव जंतुओं को पाला गया। जालीघर में रहने वाले सभी जीव-जंतु एक दूसरों के साथ मिलजुल कर रहते थे। कबूतर अपनी गुटरगूँ से शोर करते, तो खरगोश के बच्चे ऊन की गेंद की भांति इधर-उधर उछल कूद मचाते फिरते। मोर अपने नृत्य से सबको मोहित करते, तो वही तोते अपनी मधुर वाणी से सबको संदेश पहुंचाते। नीलकंठ को सभी अपना सेनापति एवं संरक्षक मानते थे। सब नीलकंठ के फैले पंखों में लुकाछिपी खेलने लगते। इसी प्रकार सभी जालीघर में एक दूसरे के साथ बड़े प्यार और स्नेह से रहते थे।
(ज) नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को सांप के चंगुल से किस तरह बचाया?
उत्तर:
नीलकंठ जाली घर के सब पशु पक्षियों का संरक्षक था। एक दिन एक साँप जाली के भीतर पहुँच गया। सब जीव जंतु भागकर इधर-उधर छिप गए। परंतु एक शिशु खरगोश सांप की पकड़ में आ गया। सांप ने खरगोश को आधा मुँह में निगल चुका था। उसी अवस्था में खरगोश के बच्चे के मुँह से धीमी स्वर में चीं-चीं आवाज निकलने लगी। उस धीमी स्वर को सुनते ही नीलकंठ तुरंत पेड़ से नीचे आया और अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए सांप को फन के पास अपने पंजों से दबाया और चोंच से प्रहार कर अधमरा कर दिया। घायल होते ही साँप की पकड़ ढीली हो गई और खरगोश का बच्चा बच गया। इस प्रकार नीलकंठ ने अपनी बुद्धि और वीरता से खरगोश के प्राण बचा लिए।
(झ) लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थी?
उत्तर:
महादेवी को पशु-पक्षियों के प्रति नीलकंठ का जो अपार प्रेम था वह सबसे अधिक भाता था। नीलकंठ जालीघर का मुखिया था। उसके बातों और इशारों को सभी पशु-पक्षी आदर से पालन करते। नीलकंठ सबकी देखभाल करता और उनके साथ खेलकूद भी करता था। इन सबके अलावा महादेवी को उसका नित्य देखना बहुत पसंद था। अपनी नृत्यकलओ से वह जिस प्रकार अपने रंग बिरंगे पंखों को खोल नृत्य करता उसको देखते ही महादेवी मोहित हो जाती थी। महादेवी अपने हाथों से उसे भुने चने खिलाती और वह बड़ी कोमलता से उस भुने चने को एक-एक करके खाने लगता। इन सभी स्वभाव को देख महादेवी को नीलकंठ बहुत भाता था।
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