साखी (Sakhi), Class 10 Hindi(Elective) आलोक भाग-2 Complete Notes Based on SEBA.

 

साखी

कबिर दास

Class 10 Hindi (elective)

आलोक भाग-2

 



 

1लघु प्रश्न उत्तर

() महात्मा कबीरदास का जन्म कब हुआ था?

उत्तर: महात्मा कबीरदास का जन्म सन 1398 में हुआ था

 

() संत कबीरदास के गुरु कौन थे?

उत्तर: रामानंद संत कबीरदास के गुरु थे

 

() कस्तूरी मृर्ग वन-वन में क्या खोजता फिरता है?

उत्तर: कस्तूरी मृर्ग वन-वन में कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ खोजता फिरता है

 

() कबीरदास के अनुसार कौन पंडित है?

उत्तर: जो 'प्रेम का ढाई अक्षर' पढ़ता है

 

() कवि के अनुसार हमें कल का काम कब करना चाहिए?

उत्तर: कवि के अनुसार हमें कल का काम आज करना चाहिए

 

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2 एक शब्द में उत्तर दो

() श्रीमंत शंकरदेव ने अपने किस ग्रंथ में कबीरदास जी का उल्लेख किया है?

उत्तर: श्रीमंत शंकरदेव ने अपने कीर्तन घोषा में कबीरदास जी का उल्लेख किया है

 

() महात्मा कबीरदास का देहावसान कब हुआ था?

उत्तर: सन 1518 में

 

() कवि के अनुसार प्रेमविहीन शरीर कैसा होता है?

उत्तर: श्मशान की तरह

 

() कबीर दास जी ने गुरु को क्या कहा है?

उत्तर: कुम्हार

 

() महात्मा कबीरदास की रचनाएँ किस नाम से प्रसिद्ध हुई

उत्तर: बीजक

 

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3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

() कबीरदास के पालक पिता-माता कौन थे?

उत्तर: कबीरदास के पालक पिता-माता थे नीरू और नीमा, जो एक मुसलमान जुलाहे दंपत्ति थे

 

() 'कबीर' शब्द का अर्थ क्या है?

उत्तर: 'कबीर' शब्द का अर्थ है बड़ा, महान और श्रेष्ठ

 

() साखी शब्द किस संस्कृत शब्द से विकसित है?

उत्तर: साखी शब्द संस्कृत शब्द 'साक्षी' से विकसित है

 

() साधु की कौन सी बात नहीं पूछी जानी चाहिए?

उत्तर: साधु को उसकी जाति नहीं पूछी जानी चाहिए

 

() डूबने से डरने वाला व्यक्ति कहाँ बैठा रहता है?

उत्तर: डूबने से डरने वाला व्यक्ति किनारे पर बैठा रहता है

 

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4. अति संक्षिप्त उत्तर दो:

() कबीरदास जी के आराध्य कैसे थे?

उत्तर: कबीर दास जी के आराध्य निर्गुण निराकार राम थेकबीरदास के अनुसार वे संसार के रोम-रोम में बसे हैंजो भी व्यक्ति सच्चे मन और पवित्र हृदय से उन्हें ढूंढता है उसे पल भर में वह मिल जाते हैं

 

() कबीरदास जी की काव्य भाषा किन गुणों से युक्त है?

उत्तर: कबीरदास जी की काव्य भाषा बिल्कुल सरल सहज बोध गम्य एवं स्वाभाविक अलंकारों से सजी हुई हैउनकी काव्य भाषा वस्तुतः तत्कालीन हिंदुस्तानी थीजिसे विद्वानों ने सघुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी आदि कहा हैउनकी रचनाओं में ज्ञान, भक्ति आत्मा परमात्मा, माया, प्रेम आदि गंभीर विषयों से युक्त है

 

() 'तेरा साईं तुझ में, ज्यों पुहुपन में बास' का आशय क्या है?

उत्तर: 'तेरा साईं तुझ में, ज्यों पुहुपन में बास' का आशय है कि जिस प्रकार फूलों की खुशबू उसके अंदर ही समाई होती हैउसी प्रकार हमारे हृदय में ही ईश्वर समाये होते हैंइसीलिए कवि का मानना है कि हमें धार्मिक स्थलों में प्रभु को ढूंढने की बजाए अपने हृदय में ईश्वर को खोजना चाहिएअर्थात ईश्वर तो चारों ओर व्याप्त है

 

() 'सत गुरु' की महिमा के बारे में कवि ने क्या कहा है?

उत्तर: सतगुरु की महिमा के बारे में कवि ने कहा है कि गुरु की महिमा अनंत अपार हैशिष्य जिस बात से अनजान थे, जिस असत्य को सत्य मानकर अंधेरे में जी रहे थे उस अंधेरे को हटाकर ज्ञान का प्रकाश दिलाना ही गुरु का दायित्व हैअर्थात शिष्यो को सही मार्ग और ज्ञानी बनाना गुरु का कर्तव्य है

 

() 'अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट' का तात्पर्य बताओ

उत्तर: 'अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट' का अर्थ है कि जिस प्रकार कुम्हार एक घड़ा गढ़ते वक्त अपने कोमल हाथों से अंदर के भाग को सहारा देता है, तो कभी बाहरी भाग को ठीक करने के लिए अपने दूसरे हाथ को कठोर कर प्रहार भी करता हैठीक उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को उनके दोष बताकर उनकी भलाई के लिए नरम स्वभाव से कठोर भी होना पड़ता है

 

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5 संक्षेप में उत्तर दो:

() बुराई खोजने के संदर्भ में कवि ने क्या कहा है?

उत्तर: बुराई खोजने के संदर्भ में कवि ने कहा है कि जो व्यक्ति दूसरों की बुराइयांँ देखा करते हैं असल में वह भूल जाते हैं कि उन से बुरा कोई है ही नहींकवि का मानना है कि अगर हम दूसरों के बुराइयों को देखने से पहले खुद के हृदय में झांक कर देखे, तो हमारे अंदर ही वह बुराइयांँ दिखने लगेगीइसीलिए कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति दूसरे में बुराई देखता है असल में वही बुरा व्यक्ति है

 

() कबीरदास जी ने किसलिए मन का मनका फेरने का उपदेश दिया है?

उत्तर: मनुष्य मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान का नाम जपते हुए हाथ में माला लिए सदियों बीत गए पर उंगलियों से माला फेरने से कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआअसल में ह्रदय परिवर्तन के लिए हमें अपने मन को बदलना होगामन में बसे मोह-माया, वासनाओं को त्यागना होगामन के अंदर बसे मैल को दूर करना है तो हमें अच्छाइयों की और मन को मोड़ना पड़ेगा 

 

() गुरु शिष्य को किस प्रकार गढ़ते हैं

उत्तर: कबीरदास गुरु और शिष्य का संबंध कुम्हार और घड़े से करते हैंगुरु अपने शिष्य को एक कुम्हार की तरह गढ़ते हैं, जिस प्रकार एक कुम्हार अपने घड़े को बनाते वक्त उसकी कमियों को ढूंढ अपने हाथों से ठोकने लगता है, तो दूसरी ओर घड़े के अंदर अपने कोमल हाथों से सहारा भी देता हैठीक उसी प्रकार एक गुरु अपने शिष्य को उसके दोष के लिए कड़ा शब्द का प्रयोग करता है तो साथ ही साथ ह्रदय से सहारा भी देता हैंअर्थात शिष्य को कुशल बनाने हेतु गुरु को कभी कठोर तो कभी कोमल भाव से शिक्षा देनी पड़ती है

 

 

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6.वाख्या

() "जाति पूछो साधु की... पड़ा रहन दो म्यान।।"

उत्तर: 

संदर्भः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत कबीरदास जी द्वारा रचित 'साखी' नामक कविता से लिया गया है

 

प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियों में साधु का ज्ञान उसके धर्म या जाति से नहीं होता उसका वर्णन किया गया है

 

वाख्याः इन पंक्तियों के जरिए कबीरदास संदेश देना चाहते हैं कि ज्ञान देने वाले साधु को कभी जाति नहीं पूछना चाहिएचाहे वह किसी जाति का हो या किसी भी धर्म काअगर उसमे सार्थक ज्ञान देने योग्य ज्ञान है तो उस ज्ञान को बटोर लेना चाहिएअर्थात ज्ञान का महत्व प्रदान करने वाले से नहीं होती बल्कि उसके अंदर के सर से होती हैठीक उसी प्रकार जैसे तलवार का मोल उसकी धार से होता है ना की उसकी म्यान सेम्यान कैसी भी हो आखिर तलवार की धार से ही उसकी कीमत देखी जाती है

 

() "जिन ढूँढा तिन पाइयाँ... रहा किनारे बैठ।।"

उत्तर:

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत कबीरदास जी द्वारा रचित 'साखी' कविता से लिया गया है

 

प्रसंग: इस पंक्ति में सच्चे मन और निडर होकर किस प्रकार गहरी साधना से अपने परमेश्वर तक पहुंचा जा सकता है उसका वर्णन है

 

वाख्या: कबीरदास कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति अगर सच्चे मन और निडर भाव से अपने लक्ष्य एवं भगवान को पाने के लिए भक्ति रूपी सागर में गहरी डुबकी लगाता है तो उसे अवश्य ही लक्ष्य की प्राप्ति होगीपरंतु जो व्यक्ति परमेश्वर की खोज में भक्ति एवं साधना में अपने आपको विलीन नहीं कर पाता, वह कभी भी ईश्वर तक नहीं पहुंच पाताअर्थात जो व्यक्ति सागर में डुबकी लगाने से डर जाता है उसे कुछ हासिल नहीं होता और वह उसी किनारे बैठा रहता हैअगर हमें परमेश्वर को पाना है तो हमें अपने आप को भक्ति में लीन करना होगाअर्थात गहरी साधना से ही परमेश्वर को पाया जा सकता है

 

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