पद-त्रय
मीराँबाई
Padattroy |
1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:
(क) कवयित्री मीराँबाई का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर:
कवयित्री मीराँबाई का जन्म सन 1498 में प्राचीन राजपूताने के अंतर्गत 'मेड़ता' प्रांत के 'कुंडकी' नामक स्थान में हुआ था।
(ख) भक्त कवयित्री मीराँबाई को कौन- सी आख्या मिली है?
उत्तर:
भक्त कवयित्री मीराँबाई को 'कृष्ण प्रेम-दीवानी' की आख्या मिली है।
(ग) मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद किस नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर:
मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद 'मीराँबाई की पदावली' के नाम से प्रसिद्ध है।
(घ) मीराबाई के पिता कौन थे?
उत्तर:
मीराँबाई के पिता राव रत्न सिंह थे।
(ङ) कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्य से किस नाम का रस पीने का आह्वान किया है?
उत्तर:
कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्य से राम अर्थात (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान किया है।
2. अति संक्षिप्त उत्तर दो:
(क) मीराँ-भजनों की लोकप्रियता पर प्रकार डालो।
उत्तर:
हिंदी की कृष्ण-भक्ति काव्य धारा में कवयित्री मीराँबाई को महाकवि सूरदास जी के बाद ही स्थान प्राप्त है।भारतीय जन-साधारण के बीच कबीरदास, सूरदास और तुलसीदास के भजनों की तरह मीरा- भजन भी समान रूप से प्रिय रहे हैं। मीराँबाई के भजन सहज संतुलन के कारण उनके गीत-पद आज अनूठे बन चुके हैं। उनके भजनों को आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति भाव से गाया जाता है। इसी से उनके भजनों की लोकप्रियता का पता चलता है।
(ख) मीराँबाई का बचपन किस प्रकार बीता था?
उत्तर:
बचपन में ही माता पिता के निधन होने के कारण उनका लालन- पालन उनके दादा राव दुदाजी की देखभाल में हुआ। उनके दादाजी भी कृष्ण के बड़े भक्त थे। इसी कारण दादा जी के साथ रहते-रहते बालिका मीराँ के कोमल हृदय में भी कृष्ण भक्ति का बीज अंकुरित होकर बढ़ने लगा और कृष्ण को ही अपना आराध्य प्रभु एवं पति मानने लगी।
(ग) मीराँबाई का देहावसान किस प्रकार हुआ था?
उत्तर:
मीराबाई कृष्ण के प्रेम भक्ति में इतनी खो गई कि साधु-संतों के साथ घूमते घूमते और अपने प्रभु को रिझाने के लिए नाचते-गाते वे अंत में द्वारकाधाम पहुँच गई। वहीं रणछोड़ जी के मंदिर में अपने प्रभु गिरिधर गोपाल का भजन कीर्तन करते-करते सन 1546 के आसपास उनका देहावसान हो गया।
3. संक्षिप्त में उत्तर दो:
(क) प्रभु कृष्ण के चरण-कमलों पर अपने को न्योछावर करने वाली मीराँबाई ने अपने आराध्य से क्या-क्या निवेदन किया है?
उत्तर:
प्रभु कृष्ण के चरण कमलो पर अपने को न्योछावर करने वाली मीराँबाई ने कृष्ण से निवेदन किया है कि वह आकर मीराँबाई पर कृपा करें। वह कृष्ण की कितनी बड़ी भक्त है यह बात पहले किसी को मालूम नहीं था पर आज पूरा संसार इस बात से ज्ञात है। अतः मीराँबाई प्रभु से प्रार्थना करती हुई कहती है कि अब प्रभु जी ही उनकी आस है। कृपा करके मुझे दर्शन देखकर मेरी मान रख लो। इसी प्रकार मीराँबाई कृष्ण से निवेदन कर रही है।
(ख) सुंदर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण देते हुए कवयित्री ने उनसे क्या-क्या कहा है?
उत्तर:
सुंदर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण देते हो कवयित्री रहती है कि वह श्याम के इंतजार में बैठी बैठी अपनी सुध-बुध खो चुकी है। उनके विरह में पके पान की तरह पीली पड़ चुकी है। उनका ध्यान तो केवल उन्हीं पर है। उसे और कोई दूसरे की आस नहीं। इसीलिए मीराँबाई का निवेदन है कि हे प्रभु गिरिधर आप जल्दी आकर मुझसे मिले और मेरी मान की रक्षा करें।
(ग) मनुष्य मात्र से राम (कृष्णा) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराँबाई ने उन्हें कौन सा उपदेश दिया है?
उत्तर:
मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराबाई कहती है कि प्रत्येक मनुष्य को राम नाम का रस का पान करना चाहिए। मनुष्य गलत संगतो को छोड़ सत्संगो को अपनाकर कृष्ण का कीर्तन सुनना चाहिए। मोह माया से दूर अर्थात अपने मन से काम, क्रोध मद, लोभ, मोह तथा लालच आदि को छोड़ ईश्वर की वाणी एवं भजन सुनने में लीन हो जाना चाहिए। अर्थात प्रभु कृष्णा के प्रेम-रंग-रस मैं स्वयं को सराबोर कर लेना चाहिए।
4. वाख्या:
(क) "मैं तो चरण लगी....... चरण- कमल बलिहार।"
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक “आलोक भाग-2” के अंतर्गत मीराँबाई द्वारा रचित 'पद-त्रय' नामक कविता से लिया गया है।
प्रसंग: इन पंक्तियों में कृष्ण के प्रति कवयित्री का जो अपार प्रेम है उसका वर्णन है।
वाख्या: कवयित्री मीराँबाई अपने आराध्य प्रभु कृष्णा गोपाल के चरण में आ गई है। पहले जब कृष्ण के प्रेम में पड़ी थी तब उसे कोई नहीं जानता था। पर आज सारे संसार को इस बात का पता चल गया है। इसलिए वह अपने प्रभु कृष्ण से निवेदन कर रही है कि कृपा करके उन्हें दर्शन दे। उनकी लाज रखें। वह तो गिरिधर के चरण-कमलों में अपने को न्योछावर कर चुकी है।
(ख) "म्हारे घर आवौ...... राषो जी मेरे माण।"
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक “आलोक भाग-2” के अंतर्गत मीराँबाई द्वारा रचित 'पद-त्रय' नामक कविता से लिया गया है।
प्रसंग: इन पंक्तियों में किस प्रकार कवयित्री कृष्णा को अपने घर पर आमंत्रित करती है उसका वर्णन है।
वाख्या: कवयित्री कह रही है कि हे सुंदर श्याम प्रभु तुम मेरे घर आओ, अब तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता। वह श्री कृष्ण के बिना अधूरी है अब उनके बिना उसका होश नहीं रहा। उनके बिना वह पके पान की तरह पीली पड़ गई है। अब तो बस कृष्ण के प्रति उनका ध्यान है और दूसरा कोई नहीं। इसलिए कवयित्री चाहती है कि वह जल्द से जल्द आकर उनसे मिले और उसका लाज रखें।
(ग) "राम नाम रस पीजै....... ताहि के रंग में भीजै।"
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक “आलोक भाग-2” के अंतर्गत मीराँबाई द्वारा रचित 'पद-त्रय' कविता से लिया गया है।
प्रसंग: इन पंक्तियों के जरिए मनुष्य को अपनी मोह माया से मुक्त होकर ईश्वर के चरणों में न्योछावर होने की बात कही गई है।
वाख्या: कवयित्री मनुष्य मात्र से रामकृष्ण नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि सभी मनुष्य अपने कुसंगत को छोड़ सतसंगत में बैठ ईश्वर कृष्ण पर रचित कीर्तन भजनों को सुनना चाहिए। अपने काम, क्रोध, माया, लोभ आदि को अपने ह्रदय से निकाल फेंकना चाहिए। अर्थात प्रभु कृष्ण के प्रेम-रंग-रस में स्वयं को न्योछावर कर लेना चाहिए।
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